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समझी जा सकतीं। पर वाह्यनिरीक्षण की पूर्णता के लिए शरीरविज्ञान, अंगविच्छेदशास्त्र, शरीराणुविज्ञान*, गर्भविज्ञान और जीवविज्ञान इत्यादि का यथावत् ज्ञान होना चाहिए। मनोविज्ञानबेत्ता कहलानेवालो मे से अधिकांश का नरतत्त्वशास्त्र की आधार स्वरूपिणी इन विद्याओ मे कुछ भी प्रवेश नहीं होता। अतः वे अपनी आत्मा के गुण धर्म की विवेचना करने के भी अयोग्य है। एक और बात ध्यान मे रखने की यह है कि इन मनोविज्ञान-वेत्ताओ की अंत करण एक सभ्यजाति के उन्नत अंतःकरण का नमूना है जो अनेक पूर्ववर्ती अवस्थाओ मे वंशपरंपराक्रम से होता हुआ वर्तमान उन्नत अवस्था को प्राप्त हुआ है। अतः उसके गुण धर्म ठीक ठीक समझने के लिए असंख्य क्षुद्र कोटि के पूर्वरूपो का विचार आवश्यक है। यह मै मानता हूँ कि आत्मनिरीक्षण प्रणाली परम आवश्यक है, पर साथ ही और दूसरी प्रणालियो ( वाह्यनिरीक्षण आदि ) की सहायता भी निरंतर अपेक्षित है *।

आधुनिक काल मे ज्यो ज्यो मनुष्य का ज्ञान बढ़ता गया और भिन्न भिन्न विज्ञानो की अनुसंधानप्रणाली पूर्णता कों पहुँचती गई त्यो त्यो यह इच्छा बढ़ती गई कि उन विज्ञानो के निरूपण बिलकुल ठीक ठीक नपे तुले हो, उनमे रत्ती भर


  • Histology

† Anthropology

  • जो लोग समझते हैं कि ऑख मूँद कर ध्यान या समाधि लगाने से भूत, भविष्य, वर्तमान तीनो काल की बाते सूझने लगती है उन्हे इस पर ध्यान देना चाहिए।