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बुंट जरमनी के सत्र से बड़े मनोविज्ञानवेत्ता है। और दार्शनिको से उनमे यह विशेषता है कि उन्हे प्राणिविज्ञान, अगविच्छेदशास्त्र और शरीरव्यापार-विज्ञान का भी पूरा पूरा अभ्यास है। उन्होने भौतिक विज्ञान और रसायन के नियमो का बहुत कुछ प्रयोग शरीरविज्ञान और उससे संबद्ध मनोविज्ञान के क्षेत्र मे करके दिखाया है। १८६३ मे उन्होने अपना "मानव और पाशव मनोविज्ञान पर व्याख्यान" प्रकाशित किया और सिद्ध किया कि मुख्य मुख्य मनोव्यापार "अचेतन आत्मा" से होते हैं। बुंट ने ( मस्तिष्क के ) उन पुरज़ो को दिखाया जो आत्मा के अचेतन पट पर वाह्य विषयसंपर्क से उत्पन्न उत्तेजना के प्रभावो को अंकित करते है। सब से बड़ा काम बुट ने यह किया कि उन्होने बेगसंबंधी भौतिक नियम पहले पहल मनोव्यापारो के क्षेत्र मे घटाए और मनस्तत्व के प्रतिपादन मे शरीरगत विद्युद्विधान की बहुत सी बातो का प्रयोग किया।

तीस वर्ष पीछे (१८९२ मे ) बुंट ने जब अपने ग्रंथ का दूसरा परिवर्तित और संक्षिप्त संस्करण निकाला तब उसमे अपना सिद्धांत एक दम बदल दिया। पहले संस्करण मे जो महत्त्व के सिद्धांत निरूपित किए गए थे वे सब परित्यक्त कर दिए गए और अद्वैत भाव के स्थान पर द्वैतभाव स्थापित किया गया। बुंट ने इस दूसरे संस्करण की भूमिका मे साफ़ कहा है कि---पहले संस्करण मे जो भ्रम मुझ से हुए थे उनसे मैं मुक्त हो गया। कुछ दिनो पीछे जब मैने विचार किया तब मालूम हुआ कि पहले जो कुछ मैने कहा था वह