पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ८१ )


सब युवावस्था का अविवेक था, वह मेरे चित मे बराबर खटकता रहा और मै जहाँ तक शीघ्र हो सके उस पाप से मुक्त होने के लिए राह देखता रहा।" इस प्रकार बुंद के ग्रंथ के दो संस्करण मे किए हुए मनस्तत्त्वनिरूपण एक दूसरे के सर्वथा विरुद्ध हैं। पहले संस्करण के निरूपण तो सर्वथा भौतिक हैं और अद्वैतवाद लिए हुए हैं और दूसरे संस्करण के निरूपण आध्यात्मिक और द्वैतभावापन्न है। पहले मे तो मनोविज्ञान को बुंट ने एक भौतिक विज्ञान मान कर उसका निरूपण उन्ही नियमो पर किया है जिन नियमो पर शरीरविज्ञान के और सब अंगो का होता है। पर तीस वर्ष पीछे उन्होने मनोविज्ञान को अध्यात्मिक विषय कहा और उसके तत्वो और सिद्धांतो को भौतिक विज्ञान के तत्त्वो और सिद्धांतो से सर्वथा भिन्न बतलाया। अपनी मन शरीर-संबंधी व्याख्या मे उन्होने कहा है कि प्रत्येक मनोव्यापार को कुछ न कुछ सहवर्ती भौतिक ( या शारीरिक ) व्यापार अवश्य होता है, पर दोनो व्यापार सर्वथा स्वतंत्र है, उनमें कोई प्राकृतिक ( कार्य कारण आदि ) संबध नही। बुंट ने जो इस प्रकार शरीर और आत्मा को पृथक् बतला कर द्वैतवाद का डंका बजाया उससे दार्शनिक मंडली मे बड़ा आनंद फैला। द्वैतवादी दार्शनिक यह देख कर कि इतना बड़ा और प्रसिद्ध वैज्ञानिक पहले विरुद्ध मत प्रकट करके पीछे अनुकूल मत प्रकाशित कर रहा है एक स्वर से कहने लगे कि मनोविज्ञान की उन्नति हुई। पर लगातार चालीस वर्ष के अध्ययन के उपरांत अब भी मैं उसी 'अविवेक' में पड़ा हूँ! लाख