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विकाश और जातिावकाश। आत्मा का गर्भविकाश या स्फुरणक्रम देखने से यह पता चलता है कि किस क्रम से एक व्यक्ति की आत्मा गर्भकाल से लेकर बराबर वृद्धि को प्राप्त होती जाती है और किन नियमो के अनुसार उसका विधान होता है। शिशु का अंतःकरण किस प्रकार क्रमश पुष्ट और उन्नत होता जाता है मातापिता, शिक्षक आदि अत्यंत प्राचीन समय से देखते आ रहे है, पर उनके चित्त मे आत्मा की पूर्णता, अमरता आदि की जो धारणा बँधी चली आ रही है उससे उनका देखना और न देखना बरावर हो जाता है। पर अब इधर कुछ दिनो से बालक की आत्मा के विकाशक्रम का विचार होने लगा है। इस विषय पर पुस्तके भी लिखी गई है।

पहले कहा जा चुका है कि जीवसृष्टि मे गर्भविकाश और जातिविकाश को क्रम एक ही है। डारविन ने जीवो की भिन्न भिन्न योनियो के विकाश की परंपरा का क्रम दिखा कर उसी क्रम से मनोवृत्तियो के विकाश का होना भी दिखाया है। उसने अनेक प्रमाणो द्वारा सिद्ध किया है कि जंतुओ की अंतःप्रवृत्ति भी जीवो की और और बातो के समान वृद्धिपरंपरा के नियमाधीन है। विशेष विशेष जीवो मे अंतःप्रवृत्ति की जो विशेषता देखी जाती है वह स्थिति सामंजस्य या अवस्थानुरूप परिवर्तन के कारण होती है। यह विशेषता पैतृक परंपरा द्वारा बराबर आगे की पीढ़ियो मे चली चलती है। जीवो की अंतःप्रवृत्ति का निर्माण और संरक्षण भी उसी प्रकार ग्रहण-सिद्धांत (देखिए-प्रकरण ५) के नियमानुसार होता है जिस प्रकार और शारीरिक शक्तियो का। डारविन ने कई पुस्तके लिख कर दिखाया है कि "मनोविकाश"