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और प्रसारण द्वारा। यह आकुंचनात्मक गति चार प्रकार की देखी जाती है--

( क ) जल मे रहनेवाले अस्थिराकृति अणुजीवो की सी गति। *


  • इस प्रकार के अस्थिराकृति सूक्ष्म अणुजीव ताल या गड्ढो के बँधे जल मे तथा समुद्र मे होते हैं। इनका शरीर एक ही घटक को बना हुआ सूक्ष्म मधुविद्वत् होता है। ये बहुत ही अच्छे खुर्दबीन से दिखाई पड़ सकते है। इनका आकार क्षण क्षण पर बदलता रहता है। इस आकार बदलने का कारण यह है कि ये चारो ओर कभी कहीं कभी कहीं अपने शरीर से पैरो की तरह की अनेक शाखाएँ या पादाकुर निकाला करते है। इनके चलने की क्रिया इस प्रकार होती है कि ये एक ओर बडी सी शाखा या पादाकुर निकालते है फिर उसी ओर अपना सारा शरीर ढाल देते है‌। इस प्रकार शाखा निकालते और शरीर ढालते हुए ये आगे बढ़ते जाते है। इन जीवो को विशिष्ट इद्रियाँ नही होती।

इनका शरीर झिल्ली के भीतर बद कललरस-कणिका के अतिरिक्त और कुछ नही होता। कललरस के भीतर बिंदु का तरह एक खाली स्थान होता है जो सुकड़ता और फैलता रहता है। इसी आकुचन और प्रसारण क्रिया से शरीर मे प्राणवायु और आहार को सचार होता है। यह पाचन और रक्तसचार का आदिम रूप है। बतलाने को आवश्यकता नही कि ऐसेही अनेक क्षुद्र अणुजीवो के योग स बड़े जतुओं के शरीर बने है। मनुष्य के रक्त मे भी इसी प्रकार के अणुजीव होते हैं। इनका शरीर सर्वत्र एकरस होता है। जो कुछ व्यापार वे कर सकते हैं अपने रसबिदुरूपी शरीर के प्रत्येक भाग से कर सकते हैं।