पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ९८ )


पूर्ण इंद्रियां होती हैं उन उन्नत जीवो के मनोव्यापार और ढंग के होते हैं। उनम 'प्राताक्रया' रूपी आदिम मनोव्यापार से धीरे धीरे चेतना का स्फुरण होता है और संकल्पकृत चेतन व्यापार प्रकट होते हैं। निम्न श्रेणी के क्षुद्र जीवो मे केवल प्रतिक्रिया ही रहती है। यह प्रतिक्रिया भी दो प्रकार की होती है-मूल और उत्तर। मूल प्रतिक्रिया वह है जो जीवसृष्टिपरंपरा मे चेतन अवस्था को कभी प्राप्त न हुई हो, अपने मूल रूप मे ही बराबर वंशपरंपरानुसार चली आती हो। उत्तर प्रतिक्रिया वह है जो पूर्वज जंतुओ मे तो संकल्पकृत चेतन व्यापार के रूप मे थी पर पीछे ( उन पूर्वज जंतुओ से विकाशपरंपरानुसार उत्पन्न होनेवाले परवर्ती जंतुओ मे ) अभ्यास आदि के कारण अज्ञानकृत अचेतन व्यापार के रूप मे हो गई। ऐसी अवस्था मे चेतन और अचेतन अंतवर्यापारो पारो के बीच कोई भेद-सीमा निर्धारित करना असंभव है। कौन व्यापार ज्ञानकृत ( चैतन ) है और कौन अज्ञानकृत यह सदा ठीक ठीक बतलाया नही जा सकता।

अब अंत.संस्कार को लीजिए। इंद्रियो की क्रिया से प्राप्त वाह्य विषय का जो प्रतिरूप भीतर अंकित होता है उसे अंत संस्कार या भावना कहते है। जीवो की ऊँची नीची श्रेणियो के अनुसार अंतःसंस्कार चार रूपो मे देखा जाता है--

( १ ) घटकगत अंतःसंस्कार-क्षुद्र एकघटक अणुजीवो मे अंतःसंस्कार समस्त मनोरस का सामान्य गुण होता है। ऐसे जीवो में भी संवेदन का चिह्न मनोरस में रह जाता है और धारणा या स्मृते के द्वारा फिर स्फुरित हो सकता