पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ९९ )


है। एक प्रकार के अत्यंत सूक्ष्म गोल सामुद्र अणुजीव होते हैं जिनके ऊपर आवरण के रूप मे एक पतली चित्रावित्रिच खोपड़ी होती है। इस खोपड़ी की चित्रकारी सब मे एक सी नही होती, भिन्न मिन्न होती है। खोपड़ी की रचना और चित्रकारी के विचार से इस जीव के हजारो उपभेद दिखाई पड़ते हैं। किसी एक विशेष चित्रकारी वाले जीव से विभाग द्वारा जो दूसरे जीव उत्पन्न होते हैं उनमें भी वही चित्रकारी बनी मिलती है। इसका केवल यही कारण बतलाया जा सकता है कि निर्माण करनेवाले कललरस में अंत.संस्कार की वृत्ति होती है उसमे परत्व-अपरत्व-संस्कार और उसके पुनरुद्भावन की शक्ति होती है।

(३) तंतुजाल-गत अंतःसंस्कार--समूहपिंड बना कर रहने वाले एकघटक अणुजीवो * और स्पंज आदि संवेदनसूत्ररहित क्षुद्र अनेकघटक (सामुद्र) जीवो, तथा पौधो के तंतुजाल मे हमें अंतःसंस्कार की दूसरी श्रेणी मिलती है। इसमे बहुत से परस्पर संबद्ध घटको का एक सामान्य मनोव्यापार देखा जाता है। इन जीवों में किसी एक इंद्रिय के उत्तेजन से प्रतिक्रिया मात्र उत्पन्न हो कर नहीं रह जाती बल्कि तंतुघटको के मनोरस मे संस्कार भी अंकित होते हैं जिनका फिर स्फुरण होता हैं।


  • ये सूक्ष्म अणुजीव एक समूहपिंड तो बना लेते हैं पर इनमें परस्पर उतना घनिष्ट संबध नहीं होता जितना समवाय रूप से एक शरीर की योजना करनेवाले घटकों में होता है।