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(३) [१] संवेदनसूत्रग्रंथिगत अचेतन अंतःसंस्कार––इस उन्नत कोटि का अन्तःसंस्कार अनेक छोटे जंतुओं में देखा जाता है। इसका व्यापार समस्त घटकों में नहीं होता बल्कि विशिष्ट स्थानों में अर्थात् मनोघटकों में ही होता है। यह अपने सादे रूप में उन्हीं जीवो में प्रकट होता है जिनमें 'प्रतिक्रिया' के लिए त्रिघटकात्मक करण का विकास होता है। ऐसे जीवों में अन्त:संस्कार का स्थान संवेदनघटक और पेशीघटक के बीच का मध्यस्थ घटक होता है। विज्ञानमय कोश के विभाग विधान के अनुसार यह अचेतन अन्त:संस्कार भी उन्नति की कई अवस्थाओं को पहुँचता है।

(४) मस्तिष्कघटकों में चेतन अन्तःसंस्कार––जीवों की उन्नत श्रेणियों की ओर बढ़ने पर हमें अन्तर्बोध या चेतना मिलने लगती है जो कि विज्ञानमय कोश के मध्यभाग के एक विशिष्ट करण की वृत्ति है। उन्नत जीवों में जो अन्तःसंस्कार होते हैं वे चेतन होते हैं, अर्थात् उनका बोध भीतर होता है। इस अन्तर्बोधा के साथ ही साथ जब चेतन अन्तःसंस्कारों की योजना के लिए मस्तिष्क के विशेष विशेष अवयव स्फुरित हो जाते हैं तब अन्तःकरण उन वृत्तियों या व्यापारों के योग्य हो जाता है जिन्हें हमें विचार, चिन्तन, बुद्धि आदि कहते हैं।


  1. संवेदनावाहक सूत्रों को ज्ञानतन्तु भी कहते हैं। ये शरीर के सब स्थानों में फैले होते हैं। रक्तवाहिनी नीली और लाल नलियों (शिराओं और धमनियों) से ये इस प्रकार पहचाने जाते हैं कि ये श्वेत होते हैं और बीच में खोखले नहीं होते। खींचने से ये उतनी जल्दी नहीं टूटते।