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अचेतन और चेतन अंतःसंस्कारों के बीच कोई सीमा निर्धारित करना अत्यंत कठिन है। यह नही बतलाया जा सकता है कि जीवसृष्टिक्रम मे किन जीवो तक अंत.संस्कार अचेतन रहते है और किन जीवो से चेतन होने लगते हैं। हॉ, इतना अलबत कहा जा सकता है कि अचेतन संस्कार से चेतन संस्कार के विकाश की परंपरा कई शाखाओ मे चलती है। यह नही है कि चेतना और बुद्धि के व्यापार मनुष्य, बंदर, कुत्ते, पक्षी आदि रीढ़वाले उन्नत जतुओ मे ही देखे जाते है बल्कि चीटी, मकड़ी, केकड़े आदि क्षुद्र कीटो मे भी पाए जाते है।

अंत सस्कार से ही संबद्ध धारणा या स्मृति है। यह वास्तव मे अंत.संस्का की पुनरुद्भावना है जिस पर सारे उन्नत मनोव्यापार अवलवित है। बाह्यविषय के इंद्रियो पर जो प्रभाव पड़ते है वे मनोरस मे अंत.संस्कार के रूप मे जाकर ठहर जाते है और स्मृति द्वारा पुनरुद्भूत होते है अर्थात् अव्यक्तावस्था से व्यक्तावस्था को प्राप्त होते है। मनोरस की निष्क्रिय अव्यक्त शक्ति सक्रिय व्यक्त शक्ति के रूप मे परिवर्तित हो जाती है। * अंत संस्कार की चार श्रेणियो के अनुसार स्मृति की भी चार श्रेणियाँ है--

(१) घटकगत स्मृति---स्मृति सजीव द्रव्य का एक सामान्य गुण है। इस महत्त्वपूर्ण बात को कुछ दिन हुए एक


• भौतिक-विज्ञान में वेग या शक्ति के दो रूप माने गए हैं--निहित और व्यक्त, जैसे पहाड की ढाल पर पड़े हुए पत्थर, चाभी दी हुई पर न चलती हुई घड़ी, बोरे मे कसी हुई बारूद मे क्रमशः