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प्रकार तैरते रहते हैं जिस प्रकार रोईवाले समुद्र के सूक्ष्म कीटाणु।

स्त्री पुरुष का संयोग होने पर जब दोनों बीजघटक परस्पर मिलते है (अथवा उनका संयोग बाहर ही बाहर होता है जैसा कि कुछ जलजंतुओ में ) तब दोनो एक दूसरे की ओर आकर्षित होकर जुट जाते है। इस आकर्षण का प्रधान कारण कललरस की रासायनिक और संवेदनात्मक क्रिया है जो घ्राण या रसन से मिलती जुलती होती है और 'अनुरागमूलक रासायनिक प्रवृत्ति' कहलाती है। इसे हम घटको का प्रेमव्यापार भी कह सकते है। पुरुष के वीर्य में रहनेवाले बहुत से रोईदार घटक ( शुक्रकीटाणु ) स्त्री के अंडघटक की ओर रेग पड़ते है और उसमे घुसना चाहते है। पर इनमे से घुसने पाता है कोई एक ही। ज्यो ही कोई शुक्रकीटाणु गर्भाड मे सिर के बल घुसा कि गर्भाड के ऊपर की झिल्ली छूट कर एक आवरण के रूप मे हो जाती है जिससे और कोई शुक्रकीटाणु भीतर नही घुस सकता। एक वैज्ञानिक ने बर्फ या मरफिया के प्रयोग से गर्भाड का ऊपरी तल कठोर कर दिया जिससे यह झिल्ली नही छूटने पाई। फल इसका यह हुआ कि गर्भाड अतिगर्भित हो गया अर्थात् उसमे कई शुक्रकीटाणु घुस पड़े। इन बातो से पाया जाता है कि बीजघटको में भी एक प्रकार की आंतरिक प्रवृत्ति या संवेदना होती है। गर्भाड और शुक्रकीटाणु जब परस्पर मिल कर एक हो जाते हैं तव अंकुरघटक की उत्पत्ति होती है जिसके उत्तरोत्तर विभाग द्वारा अनेकघटक भ्रूण का स्फुरण होता है।