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गर्भविधान की ओर ध्यान देने से हमें मनोविज्ञानसंबंधी कई महत्त्व की बातों का आभास मिलता है। इस प्रकार के अनुसंधान द्वारा चे पाँच सिद्धांत निकलते हैं---

(१) जीवन के आरंभ मे प्रत्येक मनुष्य या उन्नत जंतु एक अत्यंत सूक्ष्म घटक के रूप में होता है।

(२) सब उन्नत जीवो में अंकुरघटक की उत्पत्ति समान विधान से अर्थात् दो बीजघटकों के परस्पर एक हो जाने से होती है।

(३) दोनों बीजघटकों में से प्रत्येक को एक घटकात्मा होती है--अर्थान् दोनो में एक विशेष रूप की संवेदना और गति होती है।

(४) गर्भाधान के समय दोनो घटकों के कललरस और बीज ही मिल कर एक नहीं हो जाते बल्कि उनकी घटकात्माएँ भी परस्पर मिल जाती हैं अर्थात् दोनों में जो निहित या अव्यक गतिशक्तियाँ ( और द्रव्यों के समान ) होती हैं वे भी एक नवीन शक्ति की योजना के लिए मिल कर एक हो जाती हैं। अंकुरघट की यह नव-योजित शक्ति ही 'बीजात्मा'हैं।

(५) अतः प्रत्येक मनुष्य के शारीरिक और मानसिक गुण माता-पिता से ही प्राप्त होते हैं। वंशक्रमानुसार माता के गुणों का कुछ अंश गर्भाड द्वारा और पिता के गुणों का कुछ अंश शुक्रकीटाणु द्वारा प्राप्त होता है।