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पितामह आदि के कुछ गुण भी उसमे बराबर पाए जाते हैं। सारांश यह कि शारीरिक विशेषताओ के समान मानसिक विशेषताएँ भी वंशानुक्रम द्वारा एक से दूसरे मे जाती है। अतः यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि वंशपरंपरा का प्राकृतिक नियम भी एक शरीरधर्म है जिसका निर्धारण भौतिक और रासायनिक क्रियाओं के अनुसार--कललरस की योजना के अनुसार--होता है।

शरीर-विज्ञान संबंधी यह बात मनोविज्ञान के क्षेत्र मे बहुत ध्यान देने की है कि मनस्तत्व एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मे बराबर चला चलता है। जिस क्षण गर्भाधान होता है उसी क्षण एक नए जीव का प्रादुर्भाव होता है। पर इस नए जीव मे कोई स्वतंत्र शारीरिक और मानसिक सत्ता नही होती, यह शुक्रघटक और रजोघटक रूप दो उपादानो की योजना का परिणाम मात्र है। जिस प्रकार मनोव्यापार-रूपिणी निहित शक्ति के भौतिक आधार उक्त दोनो घटको की गुठलियो के मेल से एक नई गुठली पैदा हो जाती है उसी प्रकार दोनो घटकात्माओ के योग से निहित शक्तियो की समष्टिरूप एक नई घटकात्मा बन जाती है। अब यहाँ पर प्रश्न यह होता है कि एक ही मातापिता से उत्पन्न दो शिशुओ के स्वभाव आदि मे भेद क्यो दिखाई पड़ता है? इसके कई कारण है। पहली बात तो यह है कि यह भेद कुछ न कुछ दोनो बीजघटको में ही-उनके कललरस की योजना मे ही---रहता है। माता-पिता अपने जीवन मे स्थिति के परिवर्तन के अनुरूप जो नई नई विशेषताएँ प्राप्त करते जाते हैं उनको प्रभाव बीजघटको के