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नवाँ प्रकरण।

आत्मा का वर्गपरंपराक्रम से विकाश।

यह सिद्धांत अब पूर्णतया स्थिर हो गया है कि मनुष्य का शरीर अनेक पूर्वज जंतुओं के शरीर से परंपरानुसार परिवर्तित होते होते उत्पन्न हुआ है। अतः उसके मनोव्यापारो को हम उसके और शारीरिक व्यापारो से अलग नहीं कर सकते। हमे यह मानना पड़ता है कि शरीर और मन दोनो का विकाश क्रमशः हुआ है। अतः मनोविज्ञान मे यह देखना अत्यंत आवश्यक है कि किस प्रकार पशु की आत्मा से क्रमशः मनुष्य की आत्मा का विकाश हुआ है। आत्मा के जाति-परंपरागत विकाशक्रम का निरूपण मनस्तत्व विद्या का प्रधान अंग है। एक जाति के जंतु से विकाश द्वारा दूसरी जाति के जंतु की जो दीर्घपरंपरा चली आई है उसके अन्वेषण के द्वारा आत्मा के विकाशक्रम का भी बहुत कुछ पता चलता है।

मनुष्य के मनोव्यापारो का दूसरे जरायुज जंतुओं के मनोव्यापारों से यदि एक एक कर के मिलान करे तो पता लगेगा कि बनमानुस की आत्मा से ही कुछ और उन्नत अवस्था को प्राप्त मनुष्य की आत्मा है। समस्त रीढ़वाले जंतुओ में मनोव्यापारो का प्रधान करण मेरुरज्जु होता है। * यह मेरुरज्जु


• यह मेरुरज्जु भेजे की बत्ती के रूप का होता है और मस्तिक से ले कर पीछे की ओर मेरुदड के बीचोबीच से होता हुआ नीचे तक गया रहता है।