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विना रीढ़वाले पूर्वज कीड़ो की उस खड़ी संवेदनसूत्रग्रंथि का प्रवर्द्धित रूप है जो चिपटे केचुओ की गर्भझिल्ली (अर्धात् घटको की परत) से उन्नत अवस्था को प्राप्त हो कर बनी है। चिपटे केचुओ के अंगविश्लेषण द्वारा इस बात का पता लग जाता हैं। इन आदिम जीवो के कोई अलग संवेदनसूत्रमय विज्ञानकोश नही होता, इनके ऊपर का सारा चमड़ा ही संवेदनग्राही और मनोव्यापारसाधक होता है। ये अनेकघटक कीट परस्पर गुछकर झिल्ली के रूप मे नियोजित होनेवाले अणुजीवों के उत्तरोत्तर विभाग द्वारा बने हैं। भिन्न भिन्न जंतुओ के गर्भविधान की परीक्षा करने से इनके योजनाक्रम का पता चलता है। परस्पर मिल केर झिल्ली या आवरण बनानेवाले ये कलात्मक अणुजीव आदिम एकघटक अणुजीवो से ही उत्पन्न हुए है। गर्भ के भीतर एक घटक वा अणुजीव से जिस प्रकार अनेक घटको के कलात्मक समवाय की सृष्टि होती है और फिर उससे उत्तरोत्तर उन्नत अवस्थाओ का क्रमशः विधान होता है यह खुर्दबीन (सूक्ष्मदर्शक यंत्र) के द्वारा देखा जा सकता है। इस परीक्षा द्वारा आत्मा के विकाश का जो क्रम निर्धारित होता है। उसके अंनुसार आत्मा आठ मुख्य अवस्थाओ से होती हुई मनुष्य की आत्मा का उन्नत रूप प्राप्त करती है। इन पूर्वापर अवस्थाओ के सूचक आठ प्रकार के जो जीव पाए जाते हैं वे ये हैं--


एक प्रकार के चिपटे केचुए जानवरो के पेट या कलेजे मे भी उत्पन्न हो जाते हैं।