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(१) एकंघटक अणुजीव जिन्हे एक अत्यंत क्षुद्र कोटि की घटकात्मा मात्र होती है-—जैसे जल मे रहनेवाले रोईदार अणुजीव * ।

(२) समूहबद्ध अनेकघटक क्षुद्रजीव जो बहुत से मिलकर एक विशेष आकार के पिड बना कर रहते है, जैसे स्पंज। ये यद्यपि मिलकर बिलकुल एक जीव नही बन जाते तो भी इनमें एक प्रकार का संबंध रहता है। एक अणुजीव के त्वक् पर जो क्षोभ पहुँचाया जायगा उसका प्रभाव सारे समूह पर पड़ेगा। ऐसे जीव जल मे पाए जाते है। इनकी आत्मा को समूहबद्व आत्मा कह सकते है।

(३) आदिम अनेकघटक जीव जिनका शरीर कई घटकों के मिलकर सर्वथा एक शरीर-कोश हो जाने से बना है-जैसे चिपटे केचुओ का वर्ग।


  • ये अणुजीव एक इच के शताश के बराबर होते है और ताल आदि के स्थिर जल मे अपना रोइयो के सहारे तैरते फिरते है। ये एक लबी थैली के रूप के होते है। इनमे स्फुट इंद्रियाँ आदि नही होती। पेट की ओर कुछ दबा हुआ स्थान होता है जिसमे एक ओर से जल भीतर जाता है और दूसरी ओर से निकलता है। भीतर जो कललरस का चेप रहता है उसमे जल का पोषक अश (और भी सूक्ष्म वनस्पति आदि) मिल जाता है। जब यह जीव किसी प्रकार उद्विग्र या क्षुब्ध होता है तब अपने त्वक् के भीतर से चारो ओर लबे लबे सूत निकालता है। सड़ाव के कीड़े इसी प्रकार के होते है।

ये केचुए कई प्रकार के होते हैं। अधिकांश तो जतुओ के पेट मे पड़ते हैं, कुछ समुद्र के जल में या दलदलो में पाए जाते है।