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(४) विनारीढ़ वाले आदिम जीव जिनमे मस्तिष्क या अंतःकरण एक खड़ी सुत्रग्रंथि के रूप मे होता है---जैसे, जोक आदि का वर्ग।

(५) ऐसे रीढ़वाले जंतु जिन्हे कपाल या मस्तिष्क नही होता केवल एक सादा मेरुरज्जु होता है-जैसे, अकरोटी मत्स्य * या कुलाट।

(६) कपाल और पंचघटात्मक मस्तिष्कवाले जंतु---- जैसे, मछली।

(७) ऐसे स्तन्य जंतु जिनके मस्तिष्क का तल उन्नत अवस्था को प्राप्त रहता है। जैसे, जरायुज वर्ग (कुत्ते, विल्ली आदि)।

(८) वनमानुस और मनुष्य जिनके मस्तिष्क के भेजे में मेधाशक्ति होती है।

ऊपर लिखे हुए जीवो की सृष्टि मिन्न भिन्न कल्पो मे एक दूसरे के पीछे क्रमशः हुई है। इनमे जिस क्रम से मनस्तत्त्व का विकाश हुआ है वह नीचे दिया जाता है---

(१) घटकात्मा (या अंकुरात्मा)। जीववर्गों के बीच मनोविकाश की यह प्रथमावस्था है। ऊपर कहा जा चुका


  • चार अगुल लबा एक कीडा जो देखने मे जोक की तरह का होता है। इसमे विशेषता यह है कि इसके शरीर मे एक प्रकार की लचीली केमल रीढ़ होती है जिसे सूत्रदंड कह सकते हैं पर कपाल या मस्तिष्क नहीं होता। यह कीड़ा समुद्र तट पर बालू में बिल बना कर रहता है और पानी में खड़ा तैरता है।