पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १२६ )


है कि मनुष्य तथा और सब जीवों के सब से आदिम पूर्वज एकघटक अणुजीव थे। जिस क्रम से मनुष्य आदि प्राणी अपने पूर्ववर्ती जंतुओ से परिवर्तनपरंपरा द्वारा निकल कर अपने वर्तमान रूप मे आए है उसका पता प्रत्येक प्राणी के भ्रूणविकाशक्रम को देखने से लग जाता है। और सब अनेकघटक जीवो के समान मनुष्य भी गर्भाशय के भीतर एक क्षुद्र घटक से जिसे अंडघटक वा अंकुरघटक कहते हैं अपने जीवन का आरंभ करता है। जैसे इस घटक मे आरंभ ही से एक प्रकार की आत्मा होती है वैसे ही अत्यंत प्राचीन कल्प के उन पूर्वज अणुजीवो मे भी थी जिनसे विकाक्रमानुसार मनुष्य की उत्पत्ति हुई है।

एकघटक जीवों के मनोव्यापार किस प्रकार के होते हैं इसका पता आज कल पाए जानेवाले एकघटक अणुजीवों के शरीराविधान आदि को देखने से लग सकता है। इन अणुजीवो के अन्वीक्षण से बहुत सी नई नई बातो का पता लगा है। वरवर्न नामक एक जरमन जीवविज्ञानवेत्ता ने अनेक प्रकार से परीक्षा कर के बतलाया है कि एकघटक अणुजीवों के समस्त मनोव्यापार अचेतन अर्थात् अज्ञानीकृत होते है, उन मे जो संवेदना और गति देखी जाती है वह कललरस की कणिकाओं के धर्मानुसार होती है। एकटक अणुजीवो के मनोव्यापार जड़-द्रव्य की रासायनिक क्रियाओ (जैसे अणुओ का आकर्षण विश्लेषण आदि ) और उन्नत जंतुओं की अंतःकरण-वृत्तियों के बीच की श्रृंखला के समान हैं। उन्हें