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मेंडरे पर भेजे या संवेदनसुत्र बनानेवाली धातु का एक छल्ला सा होता है जिसमे थोड़े बहुत अंतर पर कई(प्रायः चार या ठि) कोशं या ग्रंथियां होती है। ये ग्रंथियाँ निकले हुए पैरों के सिरे पर होती हैं और वही काम देती हैं जो मस्तिष्क देता है। चिपटे केचुओ और जोक आदि कीड़ो में मुँह के उपर केवल दो सूत्रगंथियो का खड़ा मस्तिष्क होता है। इन ग्रंथियो से दो सूत्रशाखाएं त्वक और पेशियो की ओर जाती हैं। शुक्तिवर्ग के कोमलकाय कृमियो मे नीचे की ओर भी ग्रंथियाँ होती हैं जो ऊपरवाली ग्रंथियो से एक छल्ले के द्वारा जुड़ी होती हैं। इस प्रकार का छल्ला खडकाय (जिनका शरीर गुरियो से बना हो, जैसे कनखजूरा, मकड़ा, केकड़ा आदि ) कीटो मे भी होता है पर वह पेट की ओर भेजे के दो सूत्रो के रूप मे दूर तक गया होता है। रीढ़वाले जंतुओ मे अंतःकरण की बनावट और ही प्रकार की होती है। उनमे पीठ की ओर भेजे की एक बत्ती प्रकट होती है जो अगले सिरे की ओर फैल कर घटस्वरूप मस्तिष्क का रूप धारण करती है।

उन्नत कोटि के सब जीवो के मस्तिष्क यद्यपि एक ही ढाँचे के नही होते पर भिन्न भिन्न जंतुओं के मस्तिष्को का मिलान करने से यह स्पष्ट प्रतीत हो जाता है कि उनकी उत्पत्ति एक ही मूल से अथात चिपटे केचुओ और जोक आदि कीड़ों के ( कवल दो ग्रंथियो से निर्मित ) क्षुद्र मस्तिष्क से हुई है। मस्तिष्क या अंत.करण का स्फुरण गर्भकाल मे सब से ऊपरवाली झिल्ली मे होता है। सब जंतुओं के मस्तिष्क मे ग्रंथिघटक या मनोघटक होते हैं जिनके द्वारा चिंतन, बोध