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आदि जंतु अब भी पाए जाते हैं। इनसे आगे चलकर जीवों के जो तीन वर्ग एक दूसरे के पीछे उत्पन्न हुए वे दूधा पिलानेवाले जंतुओं के हैं। दूध पिलानेवाले जीवों के मस्तिष्क में दूसरे रीढ़वाले जंतुओं के मस्तिष्क से कई बातों की विशेषता होती है। सबसे मुख्य विशेषता तो यह है कि उसमें प्रथम और चतुर्थ घट की बहुत अधिक वृद्धि होती है और तृतीय या मझला घट बिल्कुल नहीं होता। सबसे आदिम वर्ग के स्तन्य (अंडजस्तन्य, अजरायुज स्तन्य) जीवों का मस्तिष्क जलस्थलचारी जीवों के मस्तिष्क से मिलता जुलता होता है पर उनसे जो उन्नत कोटि के स्तन्य जीव उत्पन्न हुए उनके मस्तिष्क में प्रथमघट की बहुत अधिक वृद्धि हुई। मनुष्य के मस्तिष्क में यह घट सबसे बड़ा और दूर तक लोथड़े की तरह फैला है[१]। इसी से संकल्प, विचार आदि उन्नत कोटि के व्यापार होते हैं। इस प्रकार का मस्तिष्क मनुष्य के अतिरिक्त केवल नराकार बनमानुसों ही का होता है।
अस्तु, यह बात पूर्णरूप से सिद्ध है कि मनुष्य की आत्मा निम्नकोटि के स्तन्य जीवों से क्रमशः उन्नति करते करते उत्पन्न हुई है।
- ↑ इसमें अखरोट के गूदे की तरह उभार होते हैं।