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अस्तु, डेकार्ट मनुष्य के संबध मे तो द्वैतवादी था, पर पशुओ के संबध मे अद्वैतवादी। मनुष्यो के संबंध मे तो वह शरीर और आत्मा को दो पृथक वस्तुएँ मानता था पर पशुओ के संबंध मे दोनो को एक ही मानता था। डेकोर्ट के इंस दोरंगे सिद्धांत का फल यह हुआ कि सत्तरहवी और अठारहवीं शताब्दी के भूतवादी तो मनोव्यापारो को भौतिक क्रिया मात्र सिद्ध करने के लिए उसकी पशुसंबंधी विवेचना का सहारा लेने लगे और अध्या- त्मवादी लोग उसके मनुष्यसंबंधी विवेचन को आगे कर के आत्मा का अमरत्व और शरीर से उसका पृथक्त्व सिद्ध बतलाने लगे। पर मनुष्य की आत्मा के संबंध मे डेकार्ट का यह विवेचन १९ वी शताब्दी के गंभीर और सूक्ष्म अनुसंधानो से सर्वथा भ्रांत सिद्ध हुआ।

(२) चेतना संवेदनसूत्रवाले जीवों ही में होती है--

मनुष्य तथा और उन्नत जीवो ही मे चेतना होती है जिन्हे केंद्रीभूत सवेदनमूत्रविधान अर्थात् विज्ञानमय कोश होता है। यही सिद्धांत आजकल जतुविज्ञान, शरीरविज्ञान, और अद्वैत मनोविज्ञान मे माना जाता है। प्राणिविज्ञान की भिन्न भिन्न शाखाओ मे जो अपूर्व उन्नति हुई है उससे इसी सिद्धांत को समर्थन होता है। हजारो वर्ष से लोग देखते आते है कि बंदर, कुत्ते आदि जो उन्नत कोटि के पशु हैं उनकी बुद्धि बहुत सी बातो मे मनुष्य की बुद्धि से मिलती जुलती होती है। उनके इंद्रियसंवेदन, अंतःसंस्कार, सुखदुःख आदि का अनुभव, इच्छा, द्वेष आदि मनोव्यापार बहुत कुछ मनुष्यो के से होते हैं। यहॉतक