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जंतुओं से मिलती जुलती इंद्रियसंवेदना, प्रवृत्ति और गति आदि होती है। अतः यदि हम समस्त शरीरियो मे चेतना माननेवालों की बात मानें तो शरीर को सघटित करनेवाले अणुरूप घटकों में भी चेतना का कुछ अश हमें मानना पड़ेगा। पहले मैं भी ऐसा ही मानता था, पर अब विवश होकर मुझे स्वीकार करना पड़ता है कि अणुजीवों मे आत्मबोध नहीं होता, उनके इंद्रिय संवेदन और अंगसंचालन आदि अचेतन अर्थात् अज्ञानकृत होते है।

( ६ ) चेतना द्रव्य के परमाणु मात्र में होती है।

इस सिद्धांत ने चेतना को सब से आगे बढ़ाया है, इसकी दौड़ सब से लंबी है। इसे माननेवाले यह समस्या हल करने से बच जाते है कि चेतना की उत्पत्ति कब और कहाँ से होती है। अंत.करण की यह वृत्ति ऐसी विलक्षण है कि इसे किसी और वृत्ति से उत्पन्न बतलाना अत्यंत कठिन ह। अतः इस कठिनता से बचने का सीधा रास्ता यही दिखाई पड़ा कि चेतना द्रव्य मात्र का एक वैसा ही अंतव्र्याप्त गुण मान ली जाय जैसे कि आकर्षण, रासायनिक प्रवृत्ति आदि हैं। ऐसा मानने पर हमे मूलचेतना उतने प्रकार की माननी पड़ती है जितने रासायनिक मूल द्रव्य * ( आक्सिजन, कारबन आदि ) होते हैं।


  • मूलद्रव्य वे है जिनमें विशलषण करने पर और किसी द्रव्य का योग नही पाया जाता। अब तक ऐसे ७७ या ७८ तत्वों का पता लगा है। इनके सब से सूक्ष्म टुकड़ों को परमाणु कहते हैं क्योंकि पहले