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जिन मे थोड़े बहुत दोनो के लक्षण रहे होगे। इस प्रकार के मध्यवर्ती जंतु कुछ तो अब भी मिलते है और कुछ की ठटरियाँ भूगर्भ में मिलती हैं। इन ठटरियों से प्राणिविज्ञानविदो को एक प्रकार के जंतु से दूसरे प्रकार के जंतु की उत्पत्ति की श्रृंखला जोड़ने में बड़ा सहारा मिलता है। जैसे, विकाश सिद्धांत द्वारा स्थिर हुआ है कि पंजेवाले जंतुओ से ही क्रमश घोड़े आदि टापवाले जंतुओ का विकाश हुआ है, पर आज कल घोड़े की तरह का कोई ऐसा जंतु नहीं मिलता जिसमे उँगलियो के चिह्न हो। पर घोड़े की तरह के ऐसे जतुओ की ठटरियाँ मिली हैं जिनके पैरों में उँगलियाँ उँगलियो के चिह्न है। वे घोड़ो के पूर्वज थे।

जीवधारियों के संबंध मे पहले लोगो की धारणा थी कि जितने प्रकार के जीव आजकल है सब एक साथ सृष्टि के आरंभ में ही उत्पन्न हो गए थे अर्थात् जितने प्रकार के जीवों के ढाँचे आदि में थे वे सब बिना किसी परिवर्तन के अब तक ज्यों के त्यो चले आ रहे है। डारविन ने इस विश्वास का खंडन किया और 'विकाश सिद्धांत' की स्थापना करके यह सिद्ध कर दिया कि ये अनेक प्रकार के ढॉचो के जो इतने जीव दिखाई पड़ते हैं सब एक ही प्रकार के अत्यंत सादे ढॉचे के क्षुद्र आदिम जीवों से क्रमशः करोड़ो वर्ष की वंशपरंपरा के बीच स्थिति के अनुसार अपने अवयवो मे भिन्न भिन्न परिवर्तन प्राप्त करते हुए और उत्तरोत्तर भेदानुसार अनेक शाखाओं में विभक्त होते हुए उत्पन्न हुए है। इसी विकाश क्रम के अनुसार मनुष्य जाति भी पूर्व युग के उन जीवो से