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उत्पन्न हुई जिनसे बंदर वनमानुस आदि उत्पन्न हुए---अर्थात् बनमानुसों और मनुष्यों के पूर्वज एक ही थे। इस विकावाद से बड़ी खलबली मची। इसकी बात जनसाधारण के विश्वास और धर्मपुस्तकों की पौराणिक सृष्टिकथा के विरुद्ध थी। हमारे यहाँ भी पुराणो मे योनियाँ स्थिर कही गई है और उनकी सख्या भी चौरासी लाख बता दी गई है। गरुड़पुराण में तो प्रत्येक वर्ग की योनियो की गिनती तक है *। डारविन ने यह अच्छी तरह सिद्ध करके दिखा दिया कि एक जाति के जीवो से ही कमश: दूसरी जाति के जीवो की उत्पत्ति हुई है। योनियाँ स्थिर नहीं है, स्थितिभेद के अनुसार असंख्य पीढियो के बीच उनके अवयवो आदि में परिवर्तन होते आए है जिससे एक योनि के जीवों से दूसरी योनि के जीवो की शाखा चली है। जिस 'जात्यंतर-परिणाम' को एक व्यक्ति से तीव्र परिणाम के रूप में पतंजलि ने अपने योगदर्शन में प्रकृति की पूर्णता से संभव बतलाया था + उसी को डारविन ने मृदु परिणाम के रूप में वंशपरंपरा के बीच प्रकृति का एक नियम सिद्ध किया।


*एकविंशति लक्षाणि ह्यडजाः परिकीर्तिता।

सेवदजाश्च तथैवोक्ता उद्भिज्जास्तत्प्रमाणतः ।।

गरुडपुराण अ० २

+ जात्यंतर परिणामः प्रकृत्यापूरात्। ४।२

नदीश्वर नाम का कोई व्यक्ति इसी शरीर से मनुष्य से देवता हो गया था। किस प्रकार एक योनि का जीव दूसरी योनि का