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यह 'जात्यंतरपरिणाम' होता किस प्रकार है? 'वंशपरंपरा' और प्राकृतिक ग्रहण के नियमानुसार। वंशपरंपरा का नियम यह है कि जो विशेषता किसी जीव मे उपन्न हो जाती है वह पीढ़ी दर पीढ़ी चली चलती है और क्रमश: अधिक स्पष्ट होती जाती है। किसी जीव मे कोई नई विशेषता उत्पन्न कैसे होती है? परिस्थिति के अनुसार। जिस स्थिति में जा जीव पड़ जाते है उसके अनुकूल उनके अग और उनका स्वभाव क्रमशः होता जाता है। नई स्थिति में जिन अंगों के व्यवहार की आवश्यकता नहीं रह जाती वे निष्क्रिय होते होते कई पीढ़ियों के पीछे लुप्त हो जाते है। जिन अवयवों को जिस रूप में व्यवहार आवश्यक हो जाता है उस रूप के व्यवहार के उपयुक्त उनके ढाँचे में भी फेरफार हो जाता है। ऐसा एक दो दिन मे नहीं होता, असंख्य पीढ़ियों के बीच मृदु परिणाम के रूप में क्रमशः होता जाता है। परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन होना बराबर देखा भी जाता है। एक प्रकार का साँप होता है जो चाळू में अंड देता है। उसे यदि पिंजड़े में बंद कर के रखते हैं तो वह बच्चे देने लगता है, अर्थात् अंडज से पिडज हो जाता है। जो विशेषता एक बार उत्पन्न हो जाती है वह बराबर पीढ़ी दर पीढ़ी चली चलती है और बढ़ती जाती है। जंतुओं के व्यापारी इस बात को जानते हैं। वे प्राय: ऐसा करते हैं कि किसी


जीव हो सकता है यही इस सूत्र में बताया गया है। पर यह ध्यान रखना चाहिए कि पतंजलि का अभिप्राय एक व्यक्ति को योन्यंतर- प्राप्ति है। डारविन ने असंख्य पीढियों में जा कर ऐसा परिणाम होना बताया है ।