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क्रम से उत्तरोत्तर बढ़ता गया। इस सिद्धांत के संबंध मे अध्यापक शेफर ने कहा---

"यदि हम यह मान लेते है कि पृथ्वी के इतिहास मे केवल एक ही बार निर्जीव से सजीव का विकाश हुआ है तो प्राणतत्त्व-संबंधिनी समस्याओ के अंतिम समाधान की कोई अशा नहीं रह जाती। पर क्या हमें ऐसा मान लेना उचित है कि पृथ्वी पर केवल एक ही बार, वह भी न जाने किस शुभ संयोग से, निर्जीव द्रव्य से सजीव द्रव्य का विकाश हुआ और प्राणतत्त्व की प्रतिष्ठा हुई? ऐसा मानने की कोई कारण न देख अंत में यही धारणा पक्की ठहरती है कि निर्जीव से सजीव का विकाश एक ही बार नही कई बार हुआ है और कौन जाने अब भी हो रहा हो" ।

जीवों का विकाश-क्रम दिखाने के पहले यह कह देना आवश्यक है कि जतु और पौधे दोनो सजीव सृष्टि के अंतर्गत हैं, दोनों में जीव है। पहले लोग समझते थे कि जंतु चर है। और पौधे अचर।मनुस्मृति में लिखा है कि "उद्भिज्जाः स्थावरास्सर्वे बीजकांडप्ररोहिण" । पर वास्तव में चर अचर का भी भेद नहीं है। बहुत से ऐसे जतु हैं जो अचर हैं (जैसे, स्पज, मूंँगा आदि) और बहुत से ऐसे सूक्ष्म समुद्री पौधे होते है जो बराबर चलते फिरते रहते हैं। बहुत से ऐसे पौधे होते हैं जो जंतुओ के समान मक्खियों आदि का शिकार करते है, उन्हें अपनी पत्तियो में बंद करके पच जाते हैं। जंतुओं और पौधो मे मूलभेद नहीं है इसका प्रयक्ष प्रमाण खुमी (कुकुरमुत्ते) की