पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ३७ )


है। यह हरितधातु वास्तव में कललरस का ही एक विकार है जो जंतुओं के कललरस में नहीं होता। अत्यंत क्षुद्र कोटि के कुछ कृमियो मे यह बहुत थोड़ी मात्रा में पाई जाती है, पर जतुओं में इसका अभाव ही समझना चाहिए। इस धातु मे से इसका हरा रंग निकाला भी जा सकता है। शिशिर ऋतु में पत्तियों के रंग का बदलना इसी रंग के फटने के कारण होता है।

पौधों और जंतुओ मे बड़ा भारी भेद आहार का है। ऊपर कहा जा चुका है कि पौधो का आहार वायु और मिट्टी आदि मिले हुए जल के रूप मे होता है। जिस प्रकार ये वायव्य द्रव्यों को विश्लिष्ट कर के अपना ठोस अंग बनाते हैं उसी प्रकार मिट्टी आदि को सजीव धातु के रूप में लाते हैं। इस प्रकार अदृश्य को दृश्य रूप में और निर्जीव को सजीव द्रव्य में परिणत करने की शक्ति पेड़ पौधों मे ही है जंतुओं में नहीं जिनका भोजन किसी न किसी जीवधारी का शरीर ही होता है, चाहे जंतु का हो चाहे वनस्पति का। पौधो में यह अद्भुत शक्ति उक्त हरित धातु के ही कारण होती है *। जड़ो


*छत्राक या खुमी की जाति के पौधो ( कुकुरमुत्ता, ढिंगरी, भूफोड़, भुकड़ी इत्यादि ) में हरित धातु नहीं होती इससे उनका रंग भी हरा नहीं होता और उनमे उद्धिद्धर्म भी नहीं होता। वे मिट्टी पानी आदि निर्जीव द्रव्यो को अपने शरीर की धातु के रूप में नहीं ला सकते। उनका पोषण मिट्टी और पानी से नहीं हो सकता। उनके पोषण के लिये किसी जीव का अर्थात् पौधे या जंतु का शरीर