से जो जल पौधे खीचते हैं और पत्तियो के सूक्ष्म छिद्रों से जो अंगारक वायु भीतर लेते हैं उन्हें यह धातु सूर्य की गरमी पा कर विश्लिष्ट कर देती है जिससे अम्लजन वायु तो निकल जाती है उदजन वायु ( हाइड्रोजन ) और अंगारक रह जाता है। इन दोनों से मिल कर यह उन अंगारक-मिश्रणो को घटित करती है जो शरीर-धातु कहलाते हैं और जिनसे पौधो के घटक, ततुजाल आदि बनते हैं। जंतु ऐसा नहीं करते। वे जल, क्षार, वायु, मिट्टी आदि निर्जीव द्रव्यों को खा कर सजीव द्रव्यों के रूप में नहीं ला सकते। वे पौधा से ही शरीर-धातु बनी बनाई प्राप्त करते है। पेड़ पौधे ही जड़ द्रव्य से इस धातु की निर्माण करते हैं।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कललरस की उत्पत्ति जल में ही हुई। इसी कललरस के अत्यंत सूक्ष्म कण जो स्वतंत्र रूप से जीवो के मूल व्यापार करते हैं घटक कहलाते हैं। नमें कुछ तो मधुबिदुवत् खुले ही रहते हैं, कुछ के ऊपर झिल्ली होती है, कुछ के बीच में एक बहुत सूक्ष्म गुठली सी होती है और कुछ सर्वत्र समान वा एकरस होते है।
चाहिए। इससे वे जब उगेंगे तब सड़ी लकड़ी के ऊपर या ऐसी जगह जहाँ की मिट्टी में मरे हुए जंतुओं या पौधों के शरीराश मिले होग। बरसात में फलों आदि के ऊपर जो सफद सफेद भुकड़ी जम जाती है वह इसी जाति के पौधों का समूह है। दाद के चकत्तो में इन्ही का समूह समझिए। सड़ाव और ख़मीर का कारण भी खुमी की जाति के सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणुजीव हैं।