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इन्हीं घटकों के योग से पौधों और जंतुओं के शरीर संघटित हुए हैं। इन घटकों को अणुशरीर समझिए क्योंकि ये जिस प्रकार जीवधारियों के शरीर में तंतुजाल के रूप में गुछे पाए जाते हैं उसी प्रकार जीव के रूप में समुद्र या गड्ढो आदि के जल में भी चलते फिरते पाए जाते हैं। इन्ही अणुशरीरों की योजना से छोटे बड़े सब शरीर बने है----क्या जंतुओ के, क्या पेड़ पौधो के *। शुक्रकीटाणु और रजःकीटाणु भी एक विशेष प्रकार के सूक्ष्म घटक मात्र हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि घटक अत्यंत सूक्ष्म होते हैं। कुछ तो इतने सूक्ष्म होते हैं कि एक इंच के लाखवे भाग के बराबर भी नहीं होते। जैस कुछ अणूद्भिद्। कुछ इतने बड़े होते हैं कि बिना खुर्दबीन की सहायता के भी देखे जा सकते हैं। पर अधिकांश घटक या घटकरूप जीव अच्छे सुक्ष्मदर्शक यत्र के विना नहीं दिखाई पड़ते। जो जीवे एक घटक मात्र है वे एकघटक जीव या अणुजीव कहलाते हैं और जिनका शरीर दो या अधिक घटकों का होता है, वे वहुघटक जीव कहलाते हैं।

आदि में एकघटक अणुजीव ही जल में उत्पन्न हुए जिनका शरीर एक घटक मात्र था।

एक घटक अणूद्भिद् अब भी समुद्र, ताल आदि के जल


*चरक ने भी शरीर के परमाणुरूप सूक्ष्म अवयव मान है। शरीरावयवास्तु परमाणुभेदेनापरिसंख्येया भवन्त्यतिबहुत्वादतिसौम्यादतीन्द्रियत्वाच।

--चरक ७