पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ४५ )


मिल कर चक्र या छत्ता बना कर रहते हैं। एक छत्ते के अंतर्गत अनेक जीव रहते हैं। तरुणावस्था प्राप्त होने पर कुछ जीव छत्ते से अलग हो जाते हैं और मिलकर एक अलग कीटाणुचक्र बनाते हैं और कुछ अलग अलग बढ़कर गर्भाड के रूप मे हो जाते है। कीटाणुचक्र का प्रत्येक कीटाणु पुछल्लेदार सूक्ष्म कीट होता है ( मनुष्य आदि जरायुज जंतुओ के शुक्रकीटाणु भी इसी प्रकार के होते है ) जो गर्भाड रूप कीट से बहुत छोटा होता है। पुछल्लेदार पु० कीटाणु चक्र से छूटने पर अपने पुछल्लों को लहराते हुए जल से इधर उधर तैरने लगते हैं पर गर्भाड रूप स्त्री कीटाणु अचल भाव से स्थिर रहते है। एक एक गर्भाड रूप स्त्री कीटाणु को अनेक पुं० कीटाणु जा घेरते हैं और अत में एक उसके भीतर घुस कर सयुक्त हो जाता है। इस प्रकार सयोग होजाने पर दोनों मिल कर एक अंडे का आकार धारण करत हैं। अंडे के भीतर का कललरस विभागक्रम द्वारा अनेक कणो मे विभक्त होजाता है। अंडे के फूटने पर ये कण बाहर निक़ल कर तैरने लगते है। थोड़े ही दिनों मे इन्हें पुछल्ले निकल आते है और ये पूरे जंतु होकर इधर उधर तैरते फिरते है। इन पुछल्लेवाले जीवों का शरीर सर्वत्र समान नहीं होता, सूक्ष्म त्वक् और पुछल्ले के अतिरिक्त आहार-मिश्रित जल के प्रवेश के लिये एक विवर भी होता है। जिसे मुँह कह सकते है।

जोवोत्पत्ति का आरंभ मोनरा और अमीबा के समान अत्यंत सादे ढाँचे के कललविंदु रूप अणुजीवों से हुआ जिनके