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होता है उसी में उस क्रिया-संपादन के अनुकूल विधान होते हैं। अतः इन बहुखंड जंतुओं मे जो बहुत सादे ढाँचे के होगे उनमे भी सिर अलग दिखाई देगा जिसमे आँख, कान आदि इंद्रियद्वार होगे और भीतर संवेदन का केद्रस्वरूप मस्तिष्क वा ग्रंथि होगी जिससे संवेदनसूत्र पीछे की ओर को गए होगे। इन कीड़ों के हृदय भी होता है जो लंबी नली के आकार का और पीठ की ओर होता है ( छाती की ओर नही जैसा कि रीढ़वाले बड़े जीवो का होता है)। बहुखड कीटो के साधारणतः दो विभाग किए गए हैं--अपाद और सपाद। मिट्टी के केचुए, जोक आदि अपाद कीटो मे है और झिगा, केकडा, कनखजूरा, गुबरैला, चीटी इत्यादि सपाद कीटो मे है। सपाद कीट मे षट्पद या पतंग कुल के कीट सबै से अधिक उन्नत होते है। चीटी, तितली, गुबरैला, टिड्डी, फतिगा, किलनी, भौरा, मक्खी इत्यादि इनके अंतर्गत है। इनमें कुछ को पूरे पर निकलते है ( जैसे तितली, गुबरैला, टिड्डी ) कुछ को अधूरे और कुछ को निकलते ही नहीं ( जैसे, किलनी )। कुछ ऐसे भी होते हैं जिनमे नर और मादा मे से किसी एक को पर होते है, दूसरे को नही।

ध्यान पूर्वक देखने से पतंगकुल के कीटो का शरीर तीन खंडों में विभक्त दिखाई पड़ता हैं—--सिर, वक्ष और उदर। किसी किसी कीट ( जैसे, भिड़ ) मे तो ये खंड केवल एक पतले तागे से जुड़े मालूम होते है। ये तीनो खड भी कई जोड़ो से मिल कर बने होते हैं। सिरवाले खंड मे मुँह पर पकड़ने, काटने या रस चूसने के लिये टूँड़ और आर होते