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हैं। वक्ष मे जो तीन टुकड़े होते हैं उनमें से प्रत्येक मे टॉगो का एक एक जोड़ा होता है। टाँगों के अतिरिक्त दोनो ओर पर भी होते हैं। उदरखंड में टाँगे आदि नही होती, छोर पर डंक तथा अंडवाहक अवयवो का विधान होता है। मुख के भीतर जो स्रोत होता है उसमे कई नलियाँ और थैलियाँ होती हैं। पाचन के लिये कई कोठो की अलग थैली होती है जिसमे पाचनरस की ग्रथियाँ होती है। यह थैली आँतो से मिली होती है। किसी किसी कीट मे इसी थैली से लगा हुआ एक और कोठा होता है जिसमे आरे की तरह के दाँत या दंदाने होते है। सिर के नीचे मस्तिष्क का अच्छा विधान होता है। बड़े कीटो के मस्तिष्क मे कई लोथड़े होते हैं जिनमे से एक पर आँखो का दिल ढाँचा स्थित रहता है। इन कीटो की आँख की बनावट बड़ी विलक्षण होती है। एक डेले के अंतर्गत हजारों आँखे होती है। बड़ी मक्खी को बारह हजरि आँखे होती है। बहुत से कीटो को इन यौगिक नेत्रो के अतिरिक्त सादी आँखे भी होती है और कुछ ऐसे होते है जिन्हे आँखे बिल्कुल नहीं होती। पतंगकुल के कीटो के संवेदन-सूत्र भी उन्नत कोटि के होते है, उनमें स्थान स्थान पर ग्रंथियाँ होती है।

पतंगकुल के कीटो मे कुछ ही ऐसे होते है जिनके बच्चों का आकार अंडे से निकलने पर पूरी बाढ़ के जीवो का सा होता है। अधिकांश कीटो मे कायाकल्प होता है अर्थात् अडे से निकलने पर बच्चो में पूरे कीटो का कुछ भी आकार नही होता। डिंभपिड परिवर्तन की कई अवस्थाओ में हो कर तव पूरे अंग और अवयव प्राप्त करता है। भिड़, गुबरैले, तितली,