पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ५८ )


रेशम के कीड़े इत्यादि इसी प्रकार के जीव है। तितली को ही लीजिए। अंडे से निकलने पर उसका बच्चा एक लंबे ढोले या सँड़े के आकार का होता है जिसके आगे की ओर छः जोड़दार पैर होते है और पीछे की ओर कई बेजोड़ के और भद्दे पैर होते है। चबाने के लिये जबड़े भी होते है। यह डिभकीट कुछ काल तक इसी अवस्था में पेड़ पौधो पर रेगता फिरता है। इसके उपरांत यह सूत की तरह कात कर एक कोश बनाता है जिसके भीतर निश्चेष्ट और नि.संज्ञ हो कर यह बद हो जाता है और कुछ काल तक उसी अवस्था मे रहता है। कोश के भीतर ही इसका पूरा कायाकल्प होता है। कायाकल्प का काल जब पूरा हो जाता है तब यह सब अंग अवयवो से युक्त उड़नेवाली तितली हो कर निकल आता है।

पतंगकुल के कीट इस बात के प्रमाण है कि जटिल और उन्नत अवयवो का विधान छोटे से छोटे जीवो मे भी हो सकता है। हाथी का डीलडौल मनुष्य के डीलडौल से बहुत बड़ा होता है पर उसके बाह्य और अंत.करण उतनी पूर्णता को प्राप्त नहीं रहते जितने मनुष्य के रहते है। बिना रीढ़वाले जतुओ में पतंग सब से अधिक उन्नत इंद्रियवाले और बुद्धिमान् होते हैं। भिड़, मधुमक्खी, चीटी इत्यादि मे कैसी संचयबुद्धि होती है, किस कौशल और व्यवस्था के साथ वे समाज बाँध कर रहती है। डारविन ने कहा है कि चीटी का मस्तिष्क, जो और कीड़ो के मस्तिष्क से बड़ा होने पर भी आलपीन की नोक का चौथाई भी नहीं होता, संसार में सब से चमत्कार पूर्ण द्रव्यकण है।