पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ५९ )

अधिकतर विद्वानो का मत है कि जिन जीवो का लालन पालन मातापिता द्वारा बहुत दिनो तक होता है अर्थात् जो बहुत दिनो तक मातापिता के स्नेह के आश्रित रहते हैं उनमे सहानुभूति और समाजवुद्धि का विकाश अधिक होता है, जैसे, बंदर, वनमानुस, मनुष्य आदि मे। चीटी तथा समाज बॉध कर रहनेवाले और कीट भी ( जैस, भिड़, मधुमक्खी आदि ) गुबरैले की दशा में बहुत दिनो तक पलते है इसीसे उनमे इतनी संघ-बुद्धि पाई जाती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस संघवुद्धि का विकाश कमश: लाखो वर्ष की परंपरा के उपरांत हुआ है।

बिना रीढ़वाले जंतुओ मे शुक्तिवर्ग के सीप, घोघे, शंख आदि कोमलकाय जीव भी है जो सूक्ष्म से सूक्ष्म और बड़े से बड़े होते है। इस वर्ग के सव से क्षुद्र कोटि के जीव चट्टानो आदि पर काई के समान जमे रहते हैं। अष्टपद ऐसे बड़े जीव भी इसी वर्ग मे है जो अपने चारो ओर फैली हुई बड़ी बड़ी भुजाओ ( या पैरों ) से बड़े बड़े जंतुओ को पकड़ लेते है। शुक्ति वर्ग के कुछ जीवों के कपाल, हृदय आदि अलग अलग अग नहीं होते। सीप को अलग सिर नहीं होता । इसी सीप के शरीर पर मोती होता है। एक प्रकार केचुओ के डिभ सीप के शरीर पर लग कर बंद हो जाते है। जहाँ जहाँ वे वद हो जाते हैं वहाँ वहाँ गोल चमकीले उभार ( या फोड़े ) पड़ जाते हैं जो काल पा कर मोती के रूप में हो जाते है। कहने की आवश्यकता नही कि शुक्तिवर्ग के सब जीव जलचारी है और उनके शरीर का ढाँचा उन्नत कोटि का नहीं होता,