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प्राणदवायु ग्रहण कर सकती हैं) और पानी के बाहर जमीन पर भी। ऐसी दो मछलियाँ पाई गई हैं---एक दक्षिण अमेरिका मे और एक आस्ट्रेलिया मे। इन दोनों के पर नहीं होते, पर के स्थान पर चार लंबे लंबे अंकुर से होते हैं जिन्हें पैरो का पूर्वरूप समझना चाहिए। ये जमीन पर बहुत देर तक रह कर सॉस ले सकती हैं। हिदुस्तान की बाँग मछली भी बहुत देर तक पानी के बाहर रह सकती है।

इस प्रकार जलचारी और स्थलचारी जंतुओ के मध्यवर्ती उभयचारी जतुओ तक हम पहुँचते है जिनमे सब से अधिक ध्यान देने योग्य है मेढक। अंडे से फूटने पर मेढक का डिंभकीट मछली के रूप में आता है, जल ही मे रहता है, गलफड़े से-साँस लेता है और घासपात खाता है। उसे लंबी पूँछ होती है, पैर नहीं होते। फिर धीरे धीरे कायाकल्प करता हुआ वह उभयचारी जतु का रूप प्राप्त करता है और जालीदार पंजो से युक्त पैरवाला, फेफड़े से सॉस लेनेवाला, कीड़ेफतिगे खानेवाला मेढक हो जाता है। उन्नत कोटि के समस्त रीढ़वाले प्राणी फेफड़े से साँस लेते हैं जो, जैसा ऊपर दिखाया गया है, गलफड़ो का ही क्रमशः समुन्नत रूप है।

उभयचारी जंतुओं से ही विकाशपरंपरा द्वारा सरीसृपों की उत्पत्ति हुई है। इस सरीसृपवर्ग के अंतर्गत सॉप, छिपकली, गिरगिट, मगर, घड़ियाल इत्यादि बहुत से जंतु है। पृथ्वी के एक पूर्वकल्प मे इस वर्ग के बड़े बड़े भीमकाय जंतु होते थे। तीस तीस हाथ लंबी आरेदार छिपकलियाँ होती थीं जो हवा में उड़ती थी। धीरे धीरे पृथ्वी पर ऐसे परिवर्तन