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पीढ़ी दर पीढ़ी चढ़ती गई यहाँ तक कि लाखों वर्षों की अखंड परपरा के उपरांत उनका कुल ही अलग हो गया। इससे यह प्रकट है कि किसी एक ढाँचे के जीव से जब कि दूसरे ढाँचे के जीव की उत्पत्ति हुई है तब ऐसे जीव भी अवश्य होने चाहिए जो दोनों के बीच के हों। ऐसे जीव कुछ तो अब तक वर्तमान हैं और कुछ के पंजर भूर्गभ के भीतर पाए गए हैं। विकाशसिद्धांत के पहले लोगो का विश्वास था कि इस समय पृथ्वी पर जितने प्रकार के जीव हैं सब के सब सृष्टि के आदि मे एक साथ ही उत्पन्न किए गए। डारविन ने यह दिखा कर कि एकही प्रकार के आदिम क्षुद्र जीवों से क्रमशः नाना प्रकार के जीवों का विधान होता आया है स्थिर-योनि सिद्धात का पूर्णरूप से खंडन कर दिया।

सूक्ष्मातिसूक्ष्म आदिम अणुजीवों से उत्तरोत्तर उन्नत कोटि के जीवों की उत्पत्ति की जो परम्परा स्थूल रूप से ऊपर दिखाई गई है इसकी संक्षिप्त उद्धरणी प्रत्येक प्राणी के भ्रूण के वृद्धि-क्रम में देखी जाती है। जिस प्रकार सृष्टि के करोड़ों वर्षों के इतिहास में एक रूप के जीव से क्रमशः दूसरे रूप के जीव की उत्पत्ति होती आई है उसी प्रकार प्रत्येक जीव का भ्रूण गर्भ के भीतर या बाहर एक रूप से दूसरे रूप में तब तक आता रहता है जब तक उसका सारा ढाँचो अपने माता-पिता के अनुरुप नहीं हो जाता। कहने की आवश्यकता नहीं कि किसी जंतु का भ्रूण समूचा शरीर बनने के पहले जिस क्रम से एक के उपरांत दूसरा रूप उत्तरोत्तर प्राप्त करता है वह प्रायः वही क्रम है जिस क्रम से पृथ्वी पर एक ढाँचे के जीव से