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दूसरे ढाँचे के जीव उत्पन्न हुए हैं। मेढक को लीजिए जो उभयचारी ( जलस्थलचारी ) जीव है। पहले दिखाया जा चुका है कि जलचर मत्स्यो से क्रमशः उभयचर जन्तुओ की उत्पत्ति हुई है। अंडे से निकलने पर कुछ दिनो तक मेढक के बच्चे मछली के रूप मे रहते है, फिर मेढक के रूप मे आते है। पिंडवृद्धि का यह विधान मेढक मे गर्भ के बाहर होता है। इससे हम लोग देख सकते है। पर बड़े जीवो मे पिडवृद्धि का सारा विधान गर्भ के भीतर होता है---जिस क्रम से सृष्टि के बीच आदिम एकघटक अणुजीवो से आरंभ हो कर एक ढाँचे के जीव से दूसरे ढाँचे के जीव की उत्पत्ति हुई है उसी क्रम से गर्भस्थ पिंड एक रूप से दूसरा रूप तब तक उत्तरोत्तर प्राप्त करता जाता है जब तक वह उस जंतु का पूरा आकार प्राप्त नही कर लेता जिसका वह भ्रूण होता है। गर्भ-परीक्षा द्वारा यह बात देखी जा सकती है।

ऊपर कहा जा चुका है कि एकघटक अणुजीवो से बहुघटक जीवो की उत्पत्ति हुई। पहले अत्यंत क्षुद्र कोटि के जीवो मे सब घटक सब प्रकार के कर्म और संवेदन-व्यापार करते थे। पर क्रमशः कार्यविभाग द्वारा घटको मे विभिन्नता आती गई। कुछ घटक एक प्रकार के व्यापार करने लगे और कुछ दूसरे प्रकार के। इस प्रकार उनके ढाँचे भी एक दूसरे से भिन्न हुए। आंख के घटक, कान के घटक, नाक के घटक, नाड़ियों के घटक, आँतो के घटक, संवेदनसूत्रो के घटक, मस्तिष्क के घटक भिन्न भिन्न प्रकार के होते है। स्पंज आदि उत्यन्त क्षुद्र कोटि के जीवो मे स्त्री घटक और पुं० घटक एक ही प्राणी के