पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/८

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भूमिका ।

गत शताब्दी में योरप में ज्यो ज्यो भौतिक विज्ञान, रसायन, भूगर्भविद्या, प्राणिविज्ञान, शरीरविज्ञान इत्यादि के अतर्गत नई नई बात का पता लगने लगा और नए नए सिद्धात स्थिर होने लगे त्यो त्यो जगत् के संबंध में लोगों की जो भावनाएँ थी वे बदलने लगीं । जहाँ पहले लोग छोटी से छोटी बात के कारण को न पाकर उसे ईश्वर की कृति मान सतोष कर लेते थे वहाँ चारों ओर नाना विज्ञानो के द्वारा


  • विज्ञान ऐसे विषयों का ज्ञान है जो किसी न किसी प्रकार हमारा इंद्रियो को प्रत्यक्ष होते है । यह शब्द हमार शास्त्रों में कई अर्थों में आया है। बौद्ध लोग विज्ञान का अर्थ प्रत्यय या भाव लेते है जो क्षण क्षण पर उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं। गीता में ज्ञान और विज्ञान शब्द कई जगह साथ साथ आए है । सातवें अध्याय में भगवान् कहते हैं---"ज्ञानं तेऽहं सर्विज्ञानमिद वक्ष्याम्यशेपत." अर्थात् 'विज्ञान' समेत इस पूरे ज्ञान की मैं तुझसे कहता हूँ । रामानुज ने अपने भाष्य में 'ज्ञानम्' का अर्थ किया है "मद्विषयमिदं ज्ञानम्" और विज्ञानम् का अर्थ किया है "विविक्ताकार विषयज्ञानम् ।" प्रकृति के नाना रूपों का जो ज्ञान है वही विज्ञान है । आगे चल कर भगवान् ने मन, बुद्धि और अहंकार के सहित पॉचों भूतों को गिना कर कहा है कि यह मेरी अपरा प्रकृति है इससे भिन्न जगत् को धारण करनेवाली जीवस्वरूपिणी मेरी परा प्रकृति है । इसी अपरा