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विकाशनियम की चरितार्थता पहले सजीव सृष्टि ( जन्तु और वनस्पति ) में ही दिखाई गई । फिर वैज्ञानिकों ने उसे लेकर संपूर्ण जगद्विधान पर घटाया और नाना रूपो के पदार्थों को एक ही मूलरूप के द्रव्य से उत्तरोत्तर उत्पन्न सिद्ध किया। इस प्रकार विकाश एक विश्व व्यापक नियम माना जाता है। नाना मतों और सम्प्रदायो की पौराणिक सृष्टिकथाओ का इस सिद्धांत से सर्वथा विरोध है। वे इस विकाशवाद के अनुसार असंगत ठहरती है, क्योकि वे सपूर्ण चराचर सृष्टि का एक ही समय में ईश्वर द्वारा उसी प्रकार रचित बतलाती है जिस प्रकार कोई कारीगर नाना प्रकार की वस्तुएँ बना कर सजाता है।

इसी विकाशवाद को लेकर हैकल आदि ने अपने प्रकृतिवाद या अनात्मवाद की प्रतिष्ठा की है जिसका विरोध पौराणिक कथाओं तक ही नही रह जाता बल्कि सारे ईश्वरवादी या आत्मवादी दर्शनो तक पहुँचता है। विकाशसिद्धांत को स्वीकार करते हुए भी अधिकांश दर्शन नित्य चेतन तत्व मानते हैं और उसकी भावना कई प्रकार से करते हैं। हैकल चैतन्य को द्रव्य का एक परिणाम कहते हैं जिसका विकाश जंतुओं के मस्तिष्क ही मे होता है। उनका कहना है कि आत्मा शरीरधर्म के अतिरिक्त और कुछ नही। अतः उसे शरीर से पृथक् एक अभौतिक नित्य तत्व मानना भूल है। शरीर के साथ ही उसकी भी इतिश्री हो जाती है। अंतः करण को अपने व्यापारो का जो बोध होता है वही चेतना है। जिस प्रकार विषयसम्पर्क द्वारा इंद्रियों और संवेदन