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है वेही संवेदनसूत्र है। ये बहुत दृढ़ होते हैं। इंद्रियों पर पड़ा हुआ संपर्क-प्रभाव इन्ही से होकर मस्तिष्क मे पहुँचता है और संस्कार उत्पन्न करता है तथा उस संस्कार द्वारा उत्पन्न क्षोभ फिर इन्हीं सूत्रों से प्रवाह के रूप मे चलकर मांसपेशियो में गति उत्पन्न करता है और अंगो को प्रेरित करता है। इन सूत्रो का मूलकेद्र मस्तिष्क और उससे मिला हुआ मेरुरज्जु है जो रीढ़ के बीचो-बीच होता हुआ बराबर नीचे की ओर को गया है। यह मेरुरज्जु भेजे और तंतुओ की बनी हुई मोटी बत्ती की तरह का होता है और कपाल मे पहुँच कर मस्तिष्क के लोथड़ो के रूप में फैला रहता है। यही बत्ती ( मेरुरज्जु ) और लोथड़े ( मस्तिष्क ) सवेदन के केद्र हैं जिनसे संवेदनसूत्र निकलकर अनंत शाखाओ प्रशाखाओ में विभक्त होते हुए मोटे महीन डोरो के रूप में शरीर के प्रत्येक भाग में फैले रहते है।

रीढ़ की गुरियों की प्रत्येक संधि पर मेरुरज्जु के संवेदनसूत्रों के दो दो जोड़े दो और को जाते हैं। रीढ़ के पीछे से जो सूत्र निकलते हैं के अंतर्मुख या संवेदनात्मक सूत्र कहलाते है। उनसे होकर इंद्रिय-संपर्कघटित अणुक्षोभ भीतर केद्र वा मस्तिष्क की ओर जाता है और उसमें पहुँच कर संवेदन उत्पन्न करता है। रीढ़ के आगे से जो सूत्र निकले होते हैं वे बहिर्मुख यो गतिवाहक सूत्र कहलाते है क्योकि संवेदन-जनित प्रेरणा उन्ही से हो कर मासपेशियो की ओर आती है और अंगो मे गति उत्पन्न करती है। मेरुरज्जु से निकल कर ये दोनों प्रकार के सूत्र ज्यो ज्यो आगे