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चलते है त्यो त्यो उत्तरोत्तर अनेक पतली शाखाओं में फैलते जाते है यहाँ तक कि त्वचा मे जा कर उनका ऐसा घना जाल फैला होता है कि शरीर के किसी स्थान पर महीन से महीन सुई की नोक चुभाईजाय तो भी वह किसी न किसी संवेदनसूत्र को अवश्य पीड़ित करेगी। इस प्रकार शरीर का सारा तल नारबर्की के घने जाल द्वारा मास्तिष्क से संबद्ध है।

अब मस्तिष्क की बनावट देखिए। मस्तिष्क कई भागो मे विभक्त है जिन सब के ठीक ठीक व्यापारो का पता नही लग सका है। मुख्य विभाग चार है----

( १ ) मज्जादल--–मेरुरज्जु जहाँ से कपाल के भीतर पहुँचता है वहां चौड़ा हो गया है। यही अंश मज्जादल है‌। यही से चेहरे की ओर जानेवाले तथा हृदय और फेफड़े की क्रिया संपादित करनेवाले सूत्र निकले होते है। इसी से इस पर आघात लगने से मनुष्य नही बचता।

( २ ) मज्जादल से थोड़ा ऊपर चल कर तंतुओं का एक छोटा लच्छा सा मिलता है जिसे सेतुबंध कहते है।

( ३ ) इसी से लगा हुआ बगल मे एक छोटा लोथड़ा सा निकला होता है जिसे छोदा मस्तिष्क कहते है। इसका ठीक ठीक क्या कार्य है इस पर मतभेद है। जहाँ तक जान पड़ता है शरीर की कुछ गतियो का विधान इसके द्वारा होता है। यह तो प्रत्यक्ष देखा गया है कि इसे हटाने से पीछे फिरने की शक्ति जाती रहती है, यद्यपि कुछ दिनों में वह फिर हो जाती है।

( ४ ) सब के ऊपर चल कर वह बड़ा लोथड़ा मिलता है जो सारे कपाल मे फैला है। यही प्रधान मस्तिष्क है‌। देखने