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में यह सफेद और भूरा मिला हुआ मुलायम गूदा सा जान पड़ता है। भूरा अंश सूक्ष्म घटो या घटको के मेल से बना होता है और सफेद अंश सूक्ष्म तंतुओं के मेल से। छोटी बडी बहुत सी दरारो के कारण मस्तिष्क का तल अखरोट की गिरी की तरह बिल्कुल खुरदुरा होता है। सब से बड़ी दरार लोथड़े के बीचोबीच से जा कर उसे दहने और वाएँ दो भागो मे विभक्त करती है। इसके अतिरिक्त और बहुत सी दरारे होती हैं। इस बड़े मस्तिष्क के ऊपरी तल पर जो सवेदनमूत्रगत घटक होते हैं वे स्मृति और धारणा के करण प्रतीत होते हैं जो संवेदन सूत्रो द्वारा प्राप्त संस्कारो को धारण और पुनरुद्भूत करते है।

मनुष्य का मस्तिष्क और जंतुओ के मस्तिष्क की अपेक्षा बहुत अधिक खुरदुरा होता है, उसमे उभार अधिक होते है। निम्न कोटि के जंतुओ का मस्तिष्क प्रायः समतल होता है। सारा मस्तिष्क पिड रक्तवाहिनी नाड़ियो के घने जाल से गुछा रहता है इससे तोल मे शेष शरीर के चालीसवे भाग के बराबर होने पर भी वह प्रवाहित रक्त का पंचमांश ग्रहण करता है। प्रायः सब लोग जानते हैं कि मानसिक श्रम मे कितनी शिथिलता आती है और ताजा रक्त पहुँचने की कितनी आवश्यकता होती है। निद्रा की अवस्था में रक्त मस्तिष्क से नीचे उतरा रहता है। इससे सूचित होता है कि मस्तिष्क के व्यापार मे शरीरशक्ति का व्यय होता है।

मस्तिष्क के मूल से संवेदनसूत्रो के दो जोड़े निकल कर दो ओर गए होते हैं। पहला जोड़ा तो घ्राणेद्रिय की ओर जाता है और दूसरा जोड़ा थोड़ा और नीचे से निकल कर