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आते ही पलकें आप से आप बिना इच्छा या संकल्प के गिर पड़ती हैं। यह अकसर देखा गया है कि आदमी का मेरुरज्जु टूट गया है और शरीर के निचले भाग मे चेतन वेदना नहीं रह गई है पर तलवे को सहलाने से पैर सिमटता रहा है।

यही अचेतन प्रतिक्रिया सब से आदिम और सादा संवेदन है जो कललरस की वृत्ति है और सूक्ष्म से सूक्ष्म अणुजीवो से लेकर बड़े से बड़े जीवो तक मे पाई जाती है। यह संवेदन और गति ज्ञान वा चेतना पर अवलंबित नही। प्राणिमात्र में यह होती है। हैकल आदि प्राणिविज्ञानविदो का मत है कि प्रतिक्रिया चेतन व्यापार नहीं है---वह ज्ञान और संकल्प द्वारा नही होती। अतः क्षुद्र अणुजीवो आदि मे जो संवेदन अर्थात् बाह्य विषयों को ग्रहण होता है वह जड़ वा अचेतन है--अर्थात् उसी प्रकार होता है जिस प्रकार निर्जीव पदार्थों मे पदार्थ विशेष के संसर्ग से गति या स्फोट होता है( जैसे, बारूद का चिनगारी पाकर भड़कना, लोहे का चुंबक पाकर उसकी ओर चलना )। जिन जीवों मे संवेदनसूत्र तो होते हैं पर मस्तिष्क के रूप मे केद्रीभूत नही होते उनमें भी, इन जीवविज्ञानियो के अनुसार, संवेदन निःसंज्ञ या अचेतन दशा में ही होते है। चेतना उन जीवो से आरंभ होती है जिनमे मस्तिष्क या अंतःकरण की रचना होती है। सारांश यह कि क्षुद्र जीवो मे चेतना नही होती, आगे चल कर कुछ उन्नत कोटि के जीवो से ही चेतना मिलने लगती है।

उपर्युक्त निरूपणो के आधार पर आधिभौतिक पक्ष के अनात्मवादी तत्त्ववेत्ता आत्मा की ऐकांतिक स्वतंत्र सत्ता