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या सत्ता भी भूतो से परे ठहरी। जैसा कि पहले कहा जा चुका है मनोविज्ञान की ओर से आत्मा के खंडन मंडन की वात अब नही उठती, अब सत्ता का विषय ही उससे अलग कर दिया गया है।

ऊपर जो कुछ कहा गया है उससे इस बात का पता लग सकता है कि विकाशसिद्धांत का प्रभाव कितनी विद्याओ पर पड़ा है और उन्होने किस प्रकार अपनी व्यवस्था इस सिद्धांत के अनुकूल की है। जगत् की उत्पत्ति, जीवो की उत्पत्ति, मनोविज्ञान, कर्तव्यशास्त्र, इतिहास, धर्माधर्म, समाजशास्त्र सब की व्याख्या विकाशपद्धति का अवलंबन करके की गई है। भाषा की उत्पत्ति का क्रम अनेक जर्मन भाषातत्वविदो ने अपनी पुस्तको मे दिखाया है। जेगर ने लिखा है कि वनमानुसो से मिलते जुलते पूर्वजो से उत्पन्न मनुष्य मे दो पैरो पर खड़े होने की विशेषता सब से अधिक हुई जिससे उसे श्वास की क्रिया या प्राणवायु पर पूरा अधिकार हो गया। इसी विशेषता से उसमे वर्णात्मक वाणी की सामर्थ्य आई। आजकल ऐसा ही कोई होगा जो इतिहास लिखने में इस बात का ध्यान न रखता हो कि किसी जाति के बीच ज्ञान, विज्ञान, अचार, सभ्यता इत्यादि का विकाश क्रमशः हुआ है। इन सब को पूर्ण रूप मे लेकर किसी जाति के जीवन का आरंभ नही हुआ है। इसी प्रकार आधुनिक मनोविज्ञान के ग्रंथ शुद्ध बुद्ध पूर्ण चेतन आत्मा को लेकर नहीं चलते। जो पशुओ की चेतनप्रवृत्ति से आरंभ नही भी करते वे भी इद्रियसंवेदन की क्रमशः योजना से आरंभ करके भावो और