पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१७१

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श्राठवाँ अध्याय] १६० कात्यायन की कही जाने वाली माध्यन्दिनी शाखा (शुक्लयजुर्वेद) की अनुक्रमणी में पाँच खण्ड हैं, प्रथम चार में रचयितायों, देव- ताओं और छन्दों की गणना है, पाँचवें खण्ड में छन्दों का संक्षिप्त वर्णन है, शुक्ल यजुवेंद के और भी बहुत से परिशिष्ट हैं, जो सब कात्या- यन के कहलाते हैं। इनमें से यहाँ केवल तीन का उल्लेख किया जा सकता है, निगम परिशिष्ट में शुक्ल यजुर्वेद के शब्दों का वर्णन है, प्रवरा ध्याय में ब्राह्मणों के कुछ वंशों का वर्णन है, जिससे विवाहादि में उनका विचार किया जा सके, चरणव्यूह में विभिन्न वैदिक सम्प्रदायों का वर्णन है, यह ग्रन्थ बहुत बाद का बनाया अथर्व वेद के परिशिष्टों में भी एक चरणम्यूह मिलता है; अथर्ववेद के ७० परिशिष्ट हैं।