पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१९८

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[ वेद और उनका साहित्य ऊपर बताया गया है कि अनेक विद्वान् पुरुष, ज्ञानी और सच्चे महारमा लोग, यक्षों से विरक्त होने लगे थे। इसमे पाखंडी तथा स्वा- थियों के हाथ में यज्ञोइम्बर पाया तब यज्ञों में एक सब से बड़ा दोर उत्पन्न हो गया । अर्थात् यज्ञों में पशुवध करना और मांस की आहुति देना प्रचलित हुआ। ऐतरेय ब्राह्मण (१1१५) में लिखा है कि किमी राजा या प्रतिष्ठित महान् का सत्कार किया जाय तो बैल या गाय मारी जानी चाहिए । धाधुनिक संस्कृत में महमान का एक नाम 'गोन ' गाय के मारनेवाला (२) श्याम यजुर्वेद के ब्राह्मण में यह ब्यौरेवार लिखा है कि छोटे-छोटे यज्ञों में विशेष देवताओं को प्रसन्न रखने के लिये किस प्रकार का पशु मारना चाहिये । गोपथ ब्राह्मए में बताया गया है कि उनका मिन-भिन्न भाग किसे मिलना चाहिये । पुरोहित लोग जीभ, गला, कंधा, नितंब, टाग इत्यादि पाते थे। यजमान पीठ का भाग लेता था। और उसकी स्त्री को पेड़ के भाग से सन्तोष करना पड़ता था । अथातः सवनीयस्थपशोर्विभागं व्याख्यास्यामः, उद्धल्या वदानानि, हमू सजिह्न प्रस्तोतुः कण्ठः स सककुदः प्रति हतु । श्येनं पक्ष उद्गातुर्द- दिणं पा ससमध्वयोः सत्यमुपगात्री सव्योंसः प्रति प्रस्थातुर्दक्षिणा श्रोगिह र यात्री प्राणो वस्तस्य, ब्राझा च्छासिलाः उरु: पोतु. सम्या श्रोणिहातुरपरसकर्थ मैत्रावरुणस्यो वाकस्य, दक्षिणानिष्टः सव्या- सदस्यस्यसदबानूकं च गृहपतेजांनी पन्यास्वासां माह्मणेन प्रतिमाह यति, वनिष्टु हदयं वृक्को चाडुल्यानि दक्षिणी वाहुरानी घस्य सभ्य भाजपस्थ दक्षिणी पादौं गृहपते घ तदस्य सय्यौपादौ गृहपल्या प्रतप्रदाया. गो० २०१८ शतपथ ब्राह्मण (शारा२१) में इस विषय में एक मनोहर विवाद है कि पुरोहित को वैज का मांस खाना चाहिये था गाय का? अन्त में ..