पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१८२

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काव्य-ग्रन्थरत्न-माला-द्विनीय रत्न

श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव

लेखक―श्रीयुत् देवीप्रसाद 'प्रीतम्'।

यह वही पुस्तक है जिसकी बाट हिन्दी-संसार बहुन दिनों से जोह रहा था और जिसके शीघू प्रकाशन के लिए तकाजै पर तकाजे आते रहे। पुस्तक की प्रशंसा का भार काव्यमर्मज्ञोंके ही न्याय और परखपर छोड़कर इसके परिचय में हम केवल इतना ही कह देना चाहते है कि यह ग्रन्थ भगवान् श्रीकृष्ण की जन्म-सम्बधिनी पौराणिक कथाओं का एक खासा दर्पण है। घटना कम, वर्णन शैली तथा विषय प्रतिपादन में लेखक ने कमाल किया है। तिसपर भी विशेषता यह है कि कविता की भाषा इतनी सरल है कि एक बार आद्योपान्त पढ़नेसे सभी घटनाऐ हृदय पलटपर अङ्कित हो जाती हैं। साहित्यमर्मज्ञों के लिए स्थान-स्थानपर अलङ्कारोंकी छटा की भी कमी नहीं है। मुखपृष्ठ पर एक चित्र भी हैं। मूल्य केवल ।) ऐटीक कागज के संस्करण का।)

काव्य-ग्रन्थरत्नमाल-तृतीय रत्न

महात्मा नन्ददासजी कृत

भ्रमर―गीत

[ सं॰ बा॰ व्रजरत्न दास ]

अष्टछाप के कवियों में महात्मा सूरदास तथा नन्ददासजी का बड़ा नाम है। इन दोनों ही की कविताएँ भक्ति ज्ञान की भंडार हैं, प्रेम-रस की सजीव प्रतिमा हैं। इस पुस्तिको में कृष्ण के अपने सखा उद्धव द्वारा गोपियों के पास भेजे हुए संदेश का तथा गोपियों द्वारा उद्धव से कह गये कृष्णप्रति उपालंभ का सजीव वर्णन है। निर्गुण और सगुण बह्मकी उपासना में भेद, विशिष्टाद्वैत की पुष्टि आदि वेदान्तिक बातों का निरूपण है। गोपियों के प्रेम-पराकाष्ठा का दिग्दर्शन है। यह पुस्तिका और भी कई स्थानों से प्रकाशित हो चुकी है, पर पाठ किसीका भी शुद्ध नहीं है। इस सस्मरण का पाठ कितनी ही हस्तलिखित प्रतियों से मिलाकर संशोधित किया गया है। फुटनोट में कठिन शब्दों के सरलार्थ भी दिये गये हैं। हिन्दु विश्वविद्यालय की 'इन्टर मीडिएट' परिक्षा में पाठ्य ग्रन्थ भी था। मूल्य )