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चतुर्दश सर्ग

क्या वह जीवन क्या उसका आनन्द है।
क्या उसका सुख क्या उसका आमोद है ॥
किन्तु प्रकृति भी तो है वैचित्र्यों भरी।
मल - कीटक मल ही मे पाता मोद है॥१४९।।

यह भौतिकता की है बड़ी विडम्बना ।
इससे होता प्राणि - पुंज का है पतन ॥
लंका से जनपद होते विध्वंस हैं।
___ मरु वन जाता है नन्दन सा दिव्य - वन ।।१५०॥

उदारता से भरी सदाशयता - रता।
सद्भावों से भौतिकता की वाधिका ।।
पुण्यमयी पावनता भरिता सद्ता।
आध्यात्मिकता ही है भव - हित - साधिका ॥१५१॥

यदि भौतिकता है अति - स्वार्थ - परायणा ।
आध्यात्मिकता 'आत्मत्याग की मूर्ति है।
यदि भौतिकता है विलासिता से भरी।
आव्यात्मिकता सदाचारिता पूर्ति है ॥१५२॥

यदि उसमें है पर - दुख - कातरता नही ।
तो इसमें है करुणा सरस प्रवाहिता॥
यदि उसमें है तामस - वृत्ति अमा - समा ।
तो इसकी है सत्प्रवृत्ति - राकासिता ॥१५३।।