पृष्ठ:वैशेषिक दर्शन.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५०
समवाय प्रकरण।

जैसा शंकराचार्य ने शारीरकभाष्य में कहा है। इससे प्रशस्तपाद भाष्य में कहा है कि द्रव्यों में जो समवाय रहता है वह तादात्म्य रूप से। अर्थात् द्रव्यों से पृथक समवाय नहीं है। जैसे द्रव्यादि में सत्ता किसी सम्बन्धान्तर से नहीं रहती, द्रव्य है इसी से उस में सत्ता है इसी तरह, जब दो द्रव्य कभी पृथक नहीं रहते, बस इतनेही में इन में समवाय सम्बन्ध है ऐसा माना जाता है।

समवाय का प्रत्यक्ष नहीं होता। समवाय एक ही है।

 

॥ इति ॥