पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१०

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निशा


भाव समझ जाता है। मा अँगूठे से कानी अंगुली को दबाकर तीन अंगुलियों को फैलाकर दिखाती है। माके बाद दो मर्द हथियारों को सँभाले आगे बढ़ते हैं, दूसरे साँस रोके वहीं खड़े रहकर प्रतीक्षा करते हैं। भीतर जाकर मा भालू के पास जाकर खड़ी होती है। बड़ा पुरुष मालुनी के पास और दूसरा बच्चे के पास फिर वे अपने नोकदार डंडे को एक साथ ऐसे ज़ोर से मारते हैं कि वह कोख में घुसकर कलेजे में पहुँच जाता है। कोई हिलता-डोलता नही। जाड़े की छःमासी निद्रा के टूटने में अभी महीने से अधिक देर है, किन्तु मा और परिवार को इसका क्या पता! उन्हें तो सतर्क रहकर ही काम करना होगा। डंडे की नोक को तीन चार बार और पेट में घुसा वे भालु को उलट देते हैं, फिर निर्भय हो उनके अगले पैरों और मुँह को पकड़कर घसीटते हुए उन्हें बाहर लाते हैं। सभी ख़ुश हो हँसते और जोर-ज़ोर से बोलते हैं।

बडे भालू को चित उलट कर माने अपने चमड़े की चादरसे एक चक्रमक पत्थर का चाक्कू निकाला। फिर घाव की जगह से मिलाकर पेट के चमड़े को चीर दिया – पत्थर के चाक्क्रू से इतनी सफ़ाई के साथ चमड़े का चीरना अभ्यस्त और मज़बूत हाथों का ही काम है। उसने नरम कलेजी का एक टुकड़ा काटकर अपने मुॅहमे डाला, दूसरा सबसे छोटे चौदह वर्षके लड़के के मुँह में। बाकी सभी लोग भालू के गिर्द बैठ गये, मा सबको कलेजी का टुकड़ा काटकर देती जारही थी। एक भालू के बाद जब माने दूसरे भालू पर हाथ लगाया, उस वक्त षोड़शी तरुणी बाहर गई। उसने वर्फ का एक डला मुँह में डाला उसी वक्त बड़ा पुरुष भी बाहर आगया। उसने भी एक डले को मुँह मे डाल षोड़शी के हाथ को पकड़ लिया। वह ज़रा झिझक कर शान्त हो गई। पुरुष उसे अपनी भुजाम बाँध एक ओर ले गया।

षाड़शी और पुरुष हाथ मे बर्फ का बड़ा डला लिये जब भालू के पास लौटे तब दोनों के गालों और आँखों मे ज़्यादा लाली थी। पुरुष ने कहा-

“मैं काटता हूँ, मा! तू थक गई है।”