पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१०८

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सुदास् ३०७ इन्हीं राजाओं और पुरोहितने -पंचालोंमें मैद-भाव खड़ा किया, उन्हें -मानव नहीं रहने दिया ।—कहते-कहते जैता किसी कामसे उठ गए। मद्रपुर ( शाकला या स्यालकोट ) मे जेताके कुलमें रहते सुदास्को चार वर्ष बीत गए थे। जेताकी स्त्री मर चुकी थी। उसकी विवाहिता बहनों और बेटियोंमे से दो-एक बराबर उसके घरमें रहती थीं; किन्तु घरके स्थायी निवासी थे जैता, सुदास् और अपाला । अपाला अब बीस सालकी हो रही थी। उनके व्यवहारसे पता लगता था कि अपाला और सुदास्को पिसमें प्रेम है। अपाला मद्रपुरकी सुन्दरियों में गिनी जाती थी और वहाँ सुन्दर तरुणकी कमी न थी। उसी तरह सुदास्-जैसे सुन्दर तरुणके लिए भी वहाँ सुन्दरियोंकी कमी न थी; किन्तु लोगोंने सदा सुदाको अपाला और अपालाको सुदास्के ही साथ नाचते देखा। जेताको भी इसका पता था, और वह इसे पसन्द करता, यदि सुदास् मद्रपुरमें रहनेके लिए तैयार हो जाता। किन्तु सुदास कभी-कभी अपने माता-पिताके लिए उत्कठित हो जाता था । जैता जानता था कि सुदा अपने माँ-बापका अचेला पुत्र हैं। एक दिन अपाला और सुदास् प्रेमियोंकी नदी चन्द्रभागा (चनाब में नहाने गए थे। नहाते वक्त कितनी ही बार सुदास्नै अपालाके नग्न अरुण शरीरको देखा था। किन्तु आज पचासों नग्न सुन्दरियोंके बीच उसके सौन्दर्यको तुलनाकर उसे पता लगा, जैसे आज ही उसने अपालाकै लावण्यकी पूरी परख पाई है। रास्ते में लौटते वक उसे मौन देखकर अपालाने कहा-'सुदास् ! आज तू बोलता नहीं, थक गया है क्या ? चन्द्रभागाकी धारको दो बार पार करना कम मेहनतकी बात नहीं है।' 'तू भी तो अपाले ! आर-पार तैर गई, और मैं तो दो क्या, समय “हो तो दस बार चन्द्रभागाको पार कर सकता हूँ । | ‘बाहर निकलने पर मैंने देखा, तेरे वक्ष कितने फूले हुए थे ? तेरी बाँहों और जाघकी पेशियाँ तो सुनी मोटी हो गई थीं।' :: :